राजस्थान में सत्ता बदलने का ट्रेंड, 3 दशक से अधिक समय से चल रहा ट्रेंड, देखिए ये रिपोर्ट

राजस्थान में सत्ता बदलने का ट्रेंड, 3 दशक से अधिक समय से चल रहा ट्रेंड, देखिए ये रिपोर्ट

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राजस्थान में सत्ता बदलने का ट्रेंड, 3 दशक से अधिक समय से चल रहा ट्रेंड, देखिए ये  रिपोर्ट

जयपुर: राजस्थान में 3 दशक से अधिक समय से सत्ता बदलने का ट्रेंड चल रहा है. इस ट्रेंड का सबसे बड़ा कारण है सत्ता विरोधी लहर. सत्ता विरोधी लहर का सबसे बड़ा असर सरकार के मंत्रियों पर होता है. यही कारण है कि प्रदेश में हर बार के चुनाव में अधिकतर मंत्रियों की करारी हार मिलती है. राजस्थान में सरकार बदलने का रिवाज बहुत पुराना है. 30 साल से अधिक समय से राजस्थान में सरकार बदलने का दौर चल रहा है. सत्ता में आने के बाद हर सरकार दावा करती है कि उसने अपने 5 साल के कार्यकाल में एक से बढ़कर एक अच्छे काम किए हैं, लेकिन चुनावों के समय सरकार के यह दावे पूरी तरीके से विफल साबित होते हैं और जनता नई सरकार बनाने के लिए वोट करती है.

सत्ता विरोधी लहर के कारण राजस्थान में बीते काफी समय से कोई भी सरकार रिपीट नहीं हो पा रही है. सत्ता विरोधी लहर का असर सबसे अधिक सरकार के मंत्रियों पर दिखाई देता है जो मंत्री पूरे 5 साल तक यह दावा करते हैं कि उन्होंने सिर्फ अपने निर्वाचन क्षेत्र में ही नहीं बल्कि प्रदेश में एक से बढ़कर एक अच्छी योजनाएं शुरू की है उनमें से अधिकतर मंत्रियों को चुनावों में करारी हार मिलती है. प्रदेश में बड़ी संख्या में मंत्रियों के चुनाव हारने का ट्रेंड भी काफी समय से चला रहा है. साल 2013 के चुनाव में तो कांग्रेस सरकार के मंत्रियों को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा. अशोक गहलोत सरकार की 80 प्रतिशत कैबिनेट हार गई. 

गहलोत ने 2008 में जीत के बाद 15 कैबिनेट और 18 राज्य मंत्री बनाए थे. लेकिन चुनाव में पार्टी ने इतिहास की सबसे बुरी हार देखी और कांग्रेस केवल 21 सीटों पर सिमट गई. गहलोत कैबिनेट में शामिल 15 मंत्रियों में से सिर्फ 3 ही जीत पाए, इनमें खुद सीएम गहलोत के अलावा महेंद्रजीत सिंह मालवीय और मास्टर भंवरलाल मेघवाल ही थे. इसके अलावा 18 राज्यमंत्रियों में से सिर्फ बृजेंद्र ओला और डॉ. राजकुमार शर्मा ही अपनी जीत को दोहरा सके. यही हाल 2018 के विधानसभा चुनाव में रहा जब वसुंधरा राजे सरकार के अधिकतर मंत्री चुनाव हार गए और भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी नहीं कर पाई

मौजूदा सरकार के भी कई मंत्री ऐसे हैं जो आगामी चुनाव में अपनी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है. सरकार के कुछ मंत्री तो अपनी विधानसभा सीट बदलने की कवायद में भी लगे हुए हैं. कुछ मंत्री ऐसे भी हैं जिन्हें टिकट नहीं दिए जाने के लिए उनके विरोधी जयपुर से लेकर दिल्ली तक विरोध जाता चुके हैं. चुनाव में अगर मंत्रियों के हार के कारणों की बात करें तो यह प्रतीत होता है कि मंत्री बनने के बाद अधिकतर नेता अपने निर्वाचन क्षेत्र में अधिक समय नहीं दे पाते और लोगों से उनकी मुलाकातें भी एक सामान्य विधायक की तरह नहीं हो पाती है. अपने विधायक के मंत्री बनने के बाद वोटर काफी अधिक उम्मीद लगा लेते हैं जिनके पूरे नहीं होने से वोटरों में नाराजी होती है जिसका असर चुनाव के परिणाम में दिखाई देता है. 

2018 में भी हारे दिग्गज मंत्री: 
-धनसिंह रावत ,पंचायती राज मंत्री, बांसवाड़ा
-अरुण चतुर्वेदी, सामाजिक न्याय मंत्री, सिविल लाइंस
-राजपाल सिंह, उद्योग मंत्री, झोटवाड़ा
-कमसा मेघवाल जनजातीय मंत्री भोपालगढ़
-यूनुस खान  परिवहन मंत्री, टोंक
-प्रभुलाल सैनी, कृषि मंत्री अंता
-श्रीचंद कृपलानी यूडीएच मंत्री, निंबाहेड़ा
-गजेंद्र सिंह वनमंत्री,  लोहावट
-अजय सिंह, सहकारिता मंत्री , डेगाना
-राम प्रताप जल संसाधन मंत्री, हनुमानगढ़
-बंशीधर बाजिया स्वास्थ्य मंत्री खंडेला
-बाबूलाल वर्मा खाद्य मंत्री बारां-अटरू
-सुशील कटारा जलदाय मंत्री चौरासी
-अमराराम राजस्व मंत्री पचपदरा
-कृष्णेंद्र कौर पर्यटन मंत्री नदबई
-ओटाराम देवासी गोपालन मंत्री सिरोही

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