प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विकल्प बनना अत्यंत दुश्कर है- (लेखक-सुदर्शन सिंह चौहान, उदयपुर)
आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्मदिवस है। यह जन्मदिन विशेष है, उनके इस जन्मदिवस का उनके समर्थकों से ज्यादा उनके विरोधी इंतजार कर रहे थे। हालांकि राजनेताओं के जन्मदिन आते रहते हैं और उनके पद और महत्व के अनुसार उनका जन्मदिवस मनाया भी जाता रहा है।
उत्तरप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती अपने जन्मदिन को मनाने के लिए काफी चर्चा में रह चुकी हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का जन्मदिवस इसलिए महत्वपूर्ण है कि उनके विरोधी यह सोचकर बैठे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी 75 वर्ष पूरे करने के बाद देश के प्रधानमंत्री पद का त्याग कर देंगें अपितु राजनीति से भी सन्यास ले लेंगें। उनकी यह धारणा ही इस बात को साबित करती है कि प्रधानमंत्री मोदी एक राजनेता के रूप में कितने ज्यादा सफल, ताकतवर और अपराजित हैं।
लेकिन प्रश्न यह है कि क्या भारत मोदी की इस विकास यात्रा को रोकने के पक्ष में है ? क्या भारत में ऐसा कोई अन्य राजनेता मोदी के विकल्प के रूप में उभरा है ? या भारतीय जनता पार्टी के पास मोदी के अलावा दूसरा कोई ऐसा नेता है, जो मोदी जैसी चमत्कारिक और जादुई चमक रखता है। सच्चाई यह है कि नरेन्द्र मोदी ने अपने 11 सालों के शासन में ना केवल समाज के सभी वर्गों के बीच अपनी लोकप्रियता बनाई है अपितु विदेशों में भी अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवाया है।
दरअसल, इस बात को समझने की जरूरत है कि सबसे पहले कांग्रेस ने ही मोदी की क्षमता को पहचाना और उनके राजनीतिक अस्तित्व को समाप्त करने की पूरी कोशिश की। यही कारण है कि प्रधानमंत्री बनने से काफी पहले गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस उनके प्रति अत्यधिक आक्रामक रही। उनकी आलोचना बहुत हुई, कई बार अपमानजनक शब्दों से भी पुकारा गया । इसके अलावा उन्हें फर्जी मामले में फंसाने की भी कोशिश की।
नरेन्द्र मोदी ने भी कांग्रेस के इन हमलों को ही अपना अस्त्र बनाया और हर बार कांग्रेस को पराजित किया। नरेन्द्र मोदी का शासन काल केवल एक और गैर कांग्रेसी राजनेता के प्रधानमंत्री बनने की कहानी नहीं है। यह कहानी भारत के सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक पुनर्जागरण की कथा है। जिसमें मजबूर और आतंकग्रस्त भारत से मजबूत और श्रेष्ठ भारत के आविर्भाव की झलक है। ऐसा भारत जो विश्व की महाशक्तियों में शामिल है और वो विश्व को एक नई दिशा दिखा रहा है।
आज की स्थिति यह है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प मोदी को अपना अच्छा मित्र बताते नहीं थकते, तो दूसरी ओर यूक्रेन को आशा है कि मोदी चाहें तो रूस से बात करके युद्ध रूकवा सकते हैं। 2014 से पहले यह स्थिति कल्पना से बाहर की थी। एक स्वयंसेवक के रूप में मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण, कश्मीर में धारा 370 को समाप्त कर देश की मुख्यधारा में लाने का अभूतपूर्व कार्य कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार को आगे बढ़ाया है, इसके अलावा काशी सहित देश भर के प्रमुख मंदिरों का उद्धार तो अलग है, और अब बंगलादेशी घुसपैठियों और रोहिन्गयाओं की पहचान कर उनको देश से बाहर निकालने का कार्य चल रहा है। जिससे सभी विपक्षी दलों को मुस्लिम वोट बैंक की नाराजगी का डर लगने लगा है, इसलिए वो इसे बंद कराने के लिए उच्चतम न्यायालय तक चले गए जहां से भी उनको राहत नहीं मिली।
सच्चाई यह है कि नरेन्द्र मोदी ने राजनीति की धारा बदल दी है। 2014 से पहले हिन्दुओं की बात करना सांप्रदायिक माना जाता था लेकिन अब राजनीतिक दलों के सामने दो ही प्रकार की धाराएं हैं या तो हिन्दुओं के हित को देखे या मुस्लिम तुष्टिकरण ही कर ले। एक बात और ध्यान देने योग्य है कि अब राजनीति सत्ता सुख पाने का माध्यम नहीं रह गया है, राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए परिणामकारी व्यक्तित्व और कृतित्व का होना पहली शर्त है। तो कोई नरेन्द्र मोदी का विरोधी या आलोचक भले ही हो सकता है लेकिन नरेन्द्र मोदी का विकल्प बनना अत्यंत दुश्कर है।
यह लेखक के अपने निजी विचार हैं
-सुदर्शन सिंह चौहान, उदयपुर
