सवाई माधोपुर जहां एक साथ सांस लेते हैं इतिहास प्रकृति संस्कृति और जंगल, रणथम्भौर किला बना पहचान- रविंद्र नाथ पुरोहित,जनरल मैनेजर आमाघाटी रिजॉर्ट, रणथंभोर
सवाई माधोपुर: वरिष्ठ पत्रकार और आमाघाटी रिज़ॉर्ट रणथंभोर के जनरल मैनेजर रविंद्र नाथ पुरोहित बताते है राजस्थान की वीर भूमि पर स्थित सवाई माधोपुर केवल एक शहर नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और प्रकृति का अद्भुत संगम है। रणथम्भौर का किला, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है, इस नगर की पहचान और आत्मा दोनों है। विन्ध्य और अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा यह किला न केवल स्थापत्य और कला का प्रतीक है, बल्कि रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान की पृष्ठभूमि में बसे होने के कारण रोमांच से भी भरा हुआ है। यहां की विविध भू-आकृतियाँ—मैदानी क्षेत्र, पहाड़ियाँ और घने जंगल—इसे एक अद्वितीय स्थल बनाती हैं, जो हर साल हजारों देशी और विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं।
रविंद्र पुरोहित ने बताया सवाई माधोपुर तक पहुंचना अब बेहद सुगम है। जयपुर और दिल्ली जैसे बड़े शहरों से इसे राष्ट्रीय राजमार्ग 11 और 12 के माध्यम से सीधे जोड़ा गया है। यह नगर 18वीं शताब्दी में जयपुर रियासत के महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम द्वारा बसाया गया था, और उन्हीं के नाम पर इसका नाम ‘सवाई माधोपुर’ रखा गया।

सवाई माधोपुर केवल एक ऐतिहासिक स्थल नहीं, बल्कि एक जीवित विरासत है, जहां हर पत्थर कोई कहानी कहता है और हर मोड़ पर इतिहास सांस लेता है। रणथम्भौर का सिंहद्वार केवल एक प्रवेश द्वार नहीं, बल्कि राजस्थान के वीर गाथाओं की शुरुआत का प्रतीक है।
रणथम्भौर क़िला
यह क़िला, रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र के अन्दर है। क़िले के तीन तरफ पहाड़ों की प्राकृतिक खाई बनी हुई है, जो इसे मजबूत और अजेय बनाती है। इसका निर्माण चौहान राजा ’रणथंबन देव’ द्वारा 944 ई. में किया गया था। खानवा युद्ध में घायल राणा सांगा को भी इलाज के लिए इसी दुर्ग में लाया गया था। रणथम्भौर का यह उल्लेखनीय क़िला चौहान शासकों द्वारा दसवीं-ग्यारवीं शताब्दी में बनाया गया था। एक आदर्श सामरिक स्थान होने के कारण यह दुश्मन को खाड़ी में रोके रखने के लिए उपयुक्त था। मुस्लिम आक्रमणकारी अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. में इस किले की घेराबन्दी की थी। तब ये किला राजघराने की महिलाओं के ‘जौहर’ (आत्मदाह) की ऐतिहासिक घटना का साक्षी बना। किले की विशेषता इसे मंदिर, जलाशय, विशाल द्वार और सुदृढ़ प्राचीरों में दिखाई पड़ती है।
घुश्मेश्वर मंदिर
पुराणों के अनुसार भगवान शिव का 12वां या अन्तिम ज्योतिर्लिंग, ’घुश्मश्वेर मंदिर’ माना जाता है। सवाई माधोपुर में शिवाड़ गांव में स्थित इस मंदिर के विषय में कई पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं। सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय कहानी भगवान शिव की उस महानता के बारे में बताती है, जिसमें उन्होंने ना केवल अपने भक्त ’घुश्मा’ के पुत्र को पुनर्जीवित किया बल्कि यहां की देवगिरी पहाड़ियों में ’घुश्मा’ के नाम पर ’घुश्मेश्वर’ के रूप में रहने की प्रतिज्ञा भी की।
जामा मस्जिद
इस चहल-पहल वाले शहर के मध्य में स्थित जामा मस्जिद राजस्थान की बेहतरीन मस्जिदों में से एक है। अंदर और बाहर दोनों जगह आपस में भली प्रकार गुथे हुए अलंरणों वाले भित्तिचित्रों के साथ मस्जिद में अभी तक प्राचीन वैभव विद्यमान है। इसका निर्माण टोंक के प्रथम नवाब, नवाब अमीर ख़ान द्वारा शुरू किया गया और उनके पुत्र ने इसे 1298 में पूरा करवाया।
खंडार किला
कहते हैं इस क़िले के राजाओं ने कभी हार नहीं देखी। सवाई माधोपुर से 45 कि.मी. दूरी पर ’खंडार किला’ पर्यटकों के लिए एक भव्य स्थल है। मेवाड़ के सिसोदिया राजाओं ने लंबे समय तक इस वैभवशाली और अजेय किले में सुरक्षित रह कर राज किया था। बाद में इसे मुग़लों ने जीत लिया था।
रणथम्भोर
कभी जयपुर राजघराने का निजी खेल अभ्यारण्य रहा रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान और बाघ अभ्यारण्य विश्व के सर्वश्रेष्ठ वन्य क्षेत्रों में से एक है।सवाई माधोपुर से 14 किमी की दूरी पर स्थित यह राष्ट्रीय उद्यान, अरावली और विंध्य पर्वतमाला के बीच स्थित है, जो 392 वर्ग किमी के सघन वनों से आच्छादित हैं, जिनमें मनोरम झरने के स्त्रोत हैं । यह हाथ न आने वाले बाघ का घर है, यहां पर पाए गए अन्य जानवरों में चिंकारा, सांभर, चीतल और विविध प्रजातियों के पक्षी शामिल हैं।
त्रिनेत्र गणेश जी मंदिर
रणथम्भौर दूर्ग स्थित त्रिनेत्र गणेशजी मंदिर सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय से करीबन 15 किलोमीटर दूरी पर दूर्ग में स्थित है। श्रद्वालूओं के आने जाने हेतु सवाई माधोपुर जयपुर रेलमार्ग पर सवाई माधोपुर जक्शन पर उतरना पड़ता है। पर्यटको श्रद्वालूओ हेतु जक्शन के बाहर जिप टैक्सी आटो इत्यादि वाहन खडे रहते है। जिससे पर्यटक मंदिर तक जाते है। वर्तमान में मंदिर परिसर में सुविधाओं का अभाव है। प्रतिवर्ष करीबन 20 लाख की ताताद में पर्यटक देशी /विदेशी पर्यटक /श्रद्वालू आते है। प्रतिवर्ष भाद्रप्रद की चतुर्थी को मेला लगता है।
चौथमाता चौथ का बरवाडा
चौथ का बरवाड़ा चौथ माता का प्राचीनकालिन मंदिर है। यह सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। प्रतिवर्ष मेले का आयोजन किया जाता है। लाखों की तादाद में श्रद्वालूओं का आवागमन बना रहता है।
सुनहरी कोठी
1824 में नवाब अमीर खान द्वारा निर्मित, सुनहरी कोठीवास को बाद में नवाब इब्राहिम अली खान द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। बाहर से पूरी तरह सोने की हवेली भीतर की भव्यता को इंगित करती है। शीशे का काम , सोने का पानी चढ़ा हुआ प्लास्टर, रंगीन कांच , पच्चीकारी और लाजर्वत और चित्रित फर्श देखकर दर्शक अभिभूत हो जाते हैं । यह हिंदू मुस्लिम समन्वय का एक सुंदर स्थापत्य नमूना है।
आमाघाटी रिजॉर्ट रणथंभोर के जनरल मैनेजर और वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र पुरोहित ने गहन अध्यन और ज्ञान से सवाई माधोपुर के बारे मे उपरोक्त जानकारी उपलब्ध करवाई,
आपको बात दें की रविंद्र नाथ पुरोहित को वरिष्ठ पत्रकार के रूप मे इतिहास, संस्कृति और प्रकृति ,राजनीति, ब्यूरोक्रेसी प्रशासनिक व्यवस्थाओं का खासा ज्ञान और जानकारी है, वे पर्यावरण प्रेमी भी है, वर्तमान मे वे आमाघाटी रिजॉर्ट के जनरल मैनेजर के रूप मे बखूबी अपनी सेवाएं दे रहे है, सामाजिक सरोकार एवं अन्य सरकारी और निजी कार्यक्रमों मे रविंद्र पुरोहित कई बार सम्मानित किये जा चुके है
-NAVDHA TIMES
