कांग्रेस और BJP के लिए आसान नहीं RLP को चुनौती देना, BSP लगाएगी वोटों में सेंध

Khinwsar Vidhan Sabha: कांग्रेस और BJP के लिए आसान नहीं RLP को चुनौती देना, BSP लगाएगी वोटों में सेंध! क्या है समीकरण
जातीय समीकरण
2008 से पहले मुंडवा और बाद में खींवसर के नाम से मशहूर खींवसर सीट पर शुरू से ही जाट समुदाय का दबदबा देखने को मिलता रहा है। इसके अलावा यहां पर दलित मतदाताओं की भी अच्छी संख्या हैं। ऐसे में दलित मतदाता भी चुनाव में जीत-हार में निर्णायक भूमिका रखते हैं।
मिर्धा बनाम बेनीवाल
इस सीट को लेकर बेनीवाल और मिर्धा की लड़ाई करीब 40 साल पुरानी है। 1980 में हनुमान बेनीवाल के पिता रामदेव ने हरेंद्र मिर्धा को हराया था। वहीं, 1985 में रामदेव ने मिर्धा को हराया था। वहीं, हरेंद्र मिर्धा को रामदेव के बेटे नारायण बेनीवाल ने हरा दिया।
2018 हनुमान बेनीवाल मैदान में
2018 के विधानसभा चुनाव आते-आते हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का उदय हो गया। बेनीवाल ने खींवसर से अपनी पार्टी से चुनाव लड़ा, जबकि सवाई सिंह चौधरी ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा। वहीं, बीजेपी ने रामचन्द्र को चुनाव मैदान में उतारा। इस चुनाव में एक बार फिर हनुमान बेनीवाल की जीत हुई।
हालांकि, बाद में 2019 के चुनाव में बेनीवाल ने नागौर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। बेनीवाल के सांसद बनने के बाद यह सीट खाली हो गई थी। बीजेपी ने आरएलपी को समर्थन दे दिया था। इस चुनाव में नारायण बेनीवाल ने हरेंद्र मिर्धा को 4630 वोटों से हराया और नारायण बेनीवाल की जीत हुई।
2013 चुनाव का रिजल्ट
हनुमान बेनीवाल (निर्दलीय)- 65,399 (43%)
दुर्ग सिंह (बीएसपी)- 42,379 (28%)
भगीरथ (बीजेपी)- 28,510 (19%)
2008 चुनाव का रिजल्ट
हनुमान बेनीवाल (बीजेपी)- 58,760 (45%)
दुर्गसिंह (बीएसपी)- 34,317 (27%)
त्रिकोणीय मुकाबला
क्षेत्र में आरएलपी के उदय के साथ ही यहां पर मुकाबला त्रिकोणीय हो जाता है। बीजेपी, कांग्रेस और आरएलपी तो यहां से मुकाबला लड़ती है। लेकिन इस सीट पर एसटी/ एसटी मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या होने के कारण बसपा भी अपना उम्मीदवार मैदान में उतारती है।