राजस्थान प्रशासनिक सेवा के बृजमोहन बैरवा की रचना- में कान्हा तो नही हूं, मथुरा का। पर तुम कौनसी, राधा हो,

राजस्थान प्रशासनिक सेवा के बृजमोहन बैरवा की रचना- में कान्हा तो नही हूं, मथुरा का। पर तुम कौनसी, राधा हो,

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राजस्थान प्रशासनिक सेवा के बृजमोहन बैरवा की रचना- में कान्हा तो नही हूं,
मथुरा का। पर तुम कौनसी, राधा हो,

कोटा: RAS बृजमोहन बैरवा वर्तमान मे अतिरिक्त सम्भागीय आयुक्त कोटा के पद पर कार्यरत है, बृजमोहन बैरवा अपनी पारदर्शी कार्यशेली, ईमानदार छवि से जनता मे बहुत लोकप्रिय हुए है, 
किसी फाइल को दो घंटे से ज्यादा पेंडिंग नही रखते RAS बृजमोहन बैरवा, प्रशासनिक लॉबी मे भी उनकी कार्यकुशलता की चर्चाएं आम है, बृजमोहन बैरवा कला प्रेमी भी है, नई नई रचनाएँ लिखना उनका शोक है, उनकी रचनाएँ भी सभी अधिकारियों मे, जनता के बीच और सोशल मीडिया पर भी काफी लोकप्रिय होती है.
  • ऐसी ही उनकी एक रचना आपके सामने प्रस्तुत है

में कान्हा तो नही हूं,
मथुरा का।
पर तुम कौनसी,
राधा हो,
हे ऊधो तुम ही बताओ
बृज की गोपिकाओ छोड़,
जिसको मैंने साधा हो।
तुम तो रूठ गई,
कान्हा से ।
में कैसे मुरली बजाऊं,
सूनी हो गई बृज की गलियां,
कैसे रास रचाऊं।
मेरे घांव पे रंग लगा के,
कैसे तुम इतराती हो,
ओ बरसाने की छोरी,
क्यों मुझको तड़पाती हो।
रंग अबीर गुलाल उड़े,
गाए प्यार की बोली।
बैर भाव को भूल गए
खेले प्रेम की होली।
कारे कारे सांवरिया को,
रंग से कर  दिए लाल।
गौरी गौरी राधा भी,
हो गई हाल बेहाल।
जब से बने द्वारकाधीश,
में किन होली खेलू।
बस मुरली की तान सुना दो,
छुप छुप कर में रो लू।

रचियता:बृज मोहन बैरवा, अतिरिक्त सम्भागीय आयुक्त, कोटा.

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